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ऐसे बीमार बना रहे हैं जानवर, जानें कैसे करें इससे बचाव

भारत सहित दुनिया के बहुत से देशों में कोरोना वायरस पहुंच चुका है। नई संक्रामक बीमारियों के प्रकोप से दुनिया पहले ही परेशान होती रहही है, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है और वो इसलिए कि लोगों के संक्रमित होने और मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। यह नया वायरस वन्यजीवों के प्रति हमारी सोच को उजागर करता है। साथ ही पशुजनित रोगों के बारे में हमारे जोखिम को भी बताता है। भविष्य में यह समस्या से ज्यादा आगे बढ़ सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते मनुष्यों और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ रहा है।

बीमार बना रहे जानवर

पिछले 50 सालों में संक्रामक बीमारियां जानवरों से मनुष्यों में बहुत तेजी से पहुंची हैं। 1980 में सामने आया एचआइवी/एड्स संकट बंदरों के कारण सामने आया था। वहीं 2004-07 के बीच एवियन फ्लू पक्षियों से और 2009 में स्वाइन फ्लू की वजह सुअर थे। हालिया मामलों में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम चमगादड़ों के जरिए मनुष्यों तक पहुंचा तो वहीं चमगादड़ों ने ही हमें इबोला दिया। मनुष्य हमेशा से ही जानवरों से रोग प्राप्त करते आ रहे हैं। हालांकि यह तथ्य है कि ज्यादातर नई संक्राम बीमारियां वन्यजीवों से आ रही हैं।

ऐसे पहुंचती हैं बीमारियां

ज्यादातर जानवरों में रोगाणु होते हैं, इनसे बीमारियों का खतरा होता है। रोगाणुओं का जीवन नए संक्रमित मेजबान पर निर्भर करता है और इसी तरह से वो दूसरी प्रजातियों में पहुंचता है। नए मेजबान की प्रतिरोधक क्षमता इस रोगाणु को खत्म करने की कोशिश करती है।

सबसे ज्यादा खतरा इन्हें

नई बीमारी, नए मरीजों में अक्सर खतरनाक होती है। यह इसलिए क्योंकि कोई भी उभरती बीमारी चिंता का विषय होती है और उसका कोई इलाज उपलब्ध नहीं होता है। कुछ समूह अन्य की तुलना में बीमारी की चपेट में आने के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। सफाई के काम में लगे लोगों के बीमारियों के चपेट में आने की संभावना होती है। पोषण की कमी, स्वच्छता का अभाव या साफ हवा न होने के कारण इन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने लगती है। वहीं नए संक्रमण बड़े शहरों में तेजी से फैल सकते हैं, क्योंकि भीड़ में लोग उसी हवा में सांस लेते हैं और समान सतहों को छूते हैं। कुछ संस्कृतियों में लोग भोजन के लिए शहरी वन्यजीवों का भी इस्तेमाल करते हैं। ये कारण भी बीमारियों के फैलने में सहायक होते हैं।

बचाव के लिए करें ये

समाज और सरकारें नए संक्रामक रोग को स्वतंत्र संकट मानती हैं, बजाय इसके कि वे यह पहचानें कि दुनिया कैसे बदल रही है। जितना हम पर्यावरण को बदलते हैं, उतनी ही संभावना है कि हम पारिस्थितिकी को बाधित करते हैं और बीमारी उभारने के अवसर प्रदान करते हैं। 10 फीसद रोगाणुओं का रिकॉर्ड रखा गया है, शेष की पहचान के लिए ज्यादा संसाधन चाहिए जिससे पता लगाया जा सके कि कौन से जानवर इसके वाहक हैं। स्वच्छता, अपशिष्ट निपटान और नियंत्रण से बीमारियों को फैलने से रोक सकते हैं।

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