लुधियाना : चालू सीजन के दौरान पोल्ट्री कारोबारियों के बुरे दिन खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। सर्दी सीजन में भी अंडे की कीमतों में उठापठक का दौर जारी है। इससे उत्पादक पशोपेश में हैं और उनको कोई राह दिखाई नहीं दे रही है।
हालत यह है कि तीन जनवरी 2020 को अंडे का ट्रेडिंग रेट 505 रुपये प्रति सैकड़ा था, जोकि पांच दिन में लुढ़क कर यह 472 रुपये रह गया है। उनका तर्क है कि यदि यही हालात रहे, तो पुराने नुकसान की भरपाई तक करना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में पोल्ट्री से कारोबारियों का मोह भंग भी हो सकता है। उत्पादकों का तर्क है कि वर्ष 2019 पोल्ट्री कारोबारियों के लिए काफी खराब रहा।
वर्ष 2018 में सीजन के दौरान अंडे का दाम 565 रुपये प्रति सैकड़ा तक गया, लेकिन पिछले साल के दौरान पांच सौ रुपये प्रति सैकड़ा आंकड़ा तक नहीं छूआ, जबकि लागत में काफी इजाफा हो गया। वहीं, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद हुई बंदी से भी कारोबार प्रभावित हुआ। अब पहाड़ी राज्यों में हो रही बर्फबारी और हाईवे बंद होने के कारण अंडे की आपूर्ति प्रभावित हो रही है। ऐसे में यहां पर कीमतों में गिरावट दर्ज की जा रही है।
तीन जनवरी को पोल्ट्री फार्म पर अंडे के दाम 488 रुपये और ट्रेडर के लिए 505 रुपये प्रति सैकड़ा थे, जो अब गिर कर फार्म पर रेट 455 रुपये और ट्रेडर के रेट 472 रुपये प्रति सैकड़ा रह गए हैं। इसमें और गिरावट की उम्मीद जताई जा रही है। उत्पादकों का तर्क है कि इस बार फार्म पर अंडे का रेट पांच सौ रुपये प्रति सैकड़ा तक पहुंचना काफी मुश्किल है।
बढ़ गए फीड के रेट
रतन पोल्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के एमडी राहुल सिद्धू कहते हैं कि फीड के रेट 14 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 22 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गए हैं, जबकि बाजार में रेट नहीं मिल पा रहा है। इससे उत्पादक नुकसान में हैं। अंडा उत्पादकों की लागत 441 रुपये प्रति सैकड़ा आ रही है। वर्ष 2019 में अंडे के फार्म पर औसतन रेट 280 से 325 रुपये ही रहे। इसके उत्पादकों को काफी घाटा हुआ। छोटे-छोटे पोल्ट्री उत्पादकों ने इस धंधे से तौबा ही कर ली। उनका तर्क है कि जम्मू-कश्मीर में रोजाना सूबे से बीस से अधिक ट्रक जाते हैं, लेकिन बर्फबारी एवं रास्ते बंद होने के कारण उन पर भी ब्रेक लगा है।
पोल्ट्री कारोबारियों के खराब रहा सीजन
बस्सी फार्म के संचालक संजीव बस्सी का कहना है कि यह सीजन पोल्ट्री कारोबारियों के लिए सबसे खराब रहा है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए नुकसान की पूर्ति अगले दो सालों में भी होना मुश्किल है। पोल्ट्री कारोबारियों पर बैंक लोन का बोझ बढ़ रहा है और वे आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। सरकार सूबे के पोल्ट्री कारोबारियों को राहतें दें। फीड पर सब्सिडी दी जाए।
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