लुधियाना : खुशी के मौके पर जब किसी को यह चिंता नहीं होती कि कितना खाना बच गया या फेंका जाएगा, तब कुछ लोग हैं जो फिक्रमंद रहते हैं। चिंता इस बात की कि निवाला कूड़े में नहीं, किसी के पेट में जाए। वंचितों को भोजन नसीब हो, इसके लिए दिन रात एक करते हैं ये लोग। नतीजा, शहर में तीन साल पहले तक शादी या खुशी के मौकों पर आयोजित समारोहों में बचा जो खाना फेंक दिया जाता था, वह अब भूखों के पेट में जाता है। तीन साल बाद अब तस्वीर बदल चुकी है। घरों, होटलों और समारोहों में बचे खाने से अब रोजाना दो हजार लोगों का पेट भर रहा है। यह नेक कार्य कर रहे हैं फीडिंग इंडिया संस्था से जुड़े लोग। इसकी शुरुआत चार्टर्ड एकाउंटेंट अनिरुद्ध साही ने की।
संस्था की शुरुआत चार- पांच दोस्तों ने की थी। अब संस्था के 160 सदस्य हैं। उनमें से 70 सदस्य सक्रिय रूप से मुहिम में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस मुहिम से जोमैटो, स्वीगी व उबर ईट्स भी जुड़ चुके हैं। ये बचने वाला खाना संस्था को दान कर देते हैं।
जरूरतमंदों को भोजन वितरित करते फीडिंग इंडिया संस्था से जुड़े सदस्य।
खाने की बर्बादी देख शुरू की मुहिम
अनिरुद्ध बताते हैं कि वे वर्ष 2016 में एक दिन दोस्त की बहन की शादी में गए थे। शादी में हलवाई के साथ
उनकी ड्यूटी लगी थी। शादी समारोह के अंत में खाना बच गया तो उन्होंने हलवाई से पूछा कि इस खाने का क्या करोगे। हलवाई बोला- फेंक देंगे। यह बात उन्हें खल गई। उन्होंने सितंबर 2016 में फीडिंग इंडिया की लुधियाना शाखा की स्थापना की। अनिरुद्ध तब सीए की पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने अपने दोस्तों को मुहिम से जोड़ा। पहले चरण में शहर के मैरिज पैलेसों, होटलों व रेस्टोरेंटों से संपर्क किया। सभी से अच्छा रिस्पांस मिला। धीरे-धीरे उन्होंने कैटरिंग का काम करने वालों के साथ भी संपर्क साधा। इससे घरों में होने वाले समारोहों का बचा खाना भी उन्हें मिलने लगा। संस्था के सदस्य यह खाना शहर के अलग-अलग इलाकों में जाकर जरूरतमंदों को बांटते हैं। संस्था को सबसे ज्यादा खाना अब धार्मिक स्थलों व घरों में होने वाले समारोहों से मिलता है। शहर की कुछ प्रमुख बेकरी शॉप्स से भी नियमित रूप से खाना मिलता है।
फीडिंग इंडिया संस्था शहर के आसपास झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों तक भी खाना पहुंचा रही है।
मैजिक फ्रिज से भी मिलता है गरीबों को खाना
संस्था ने वृंदावन रोड पर एक मैजिक फ्रिज लगाया है। इस फ्रिज में आसपास के लोग अपने घरों से बचा साफ खाना डाल देते हैं। इसके बाद जरूरतमंद व्यक्ति फ्रिज से खाना ले लेता है। अनिरुद्ध बताते हैं कि जिनके पास खाना बचता है, वे फोन कर सूचना देते हैं और वालंटियर उनके पास पहुंच जाते हैं। खाने की गुणवत्ता को देखने के बाद उसे लिया जाता है। खाना एकत्र करने के बाद उसे बांटने के लिए पहुंचाया जाता है।
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