जालंधर : सिविल अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में दाखिल मरीजों का निजी अस्पतालों में चले जाने क्रम में रोक लग गई है। ऐसा एक जनवरी को ट्रॉमा सेंटर से नर्सो व दर्जा चार कर्मियों के तबादले के बाद हो पाया है।
सिविल अस्पताल में नए साल की शुरूआत होते ही तीन नर्सों व चार दर्जा चार कर्मियों का दूसरे वाडरें में तबादला किया गया था। इनका तबादला इस कारण किया गया था क्योंकि ट्रॉमा सेंटर से गंभीर हालत में आए मरीजों के लामा (लेफ्ट अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस) होने के आंकड़े अचानक बढ़ने लगे थे। आरोप था कि निजी अस्पतालों से कमीशन के चक्कर में यहां का स्टाफ मरीज के परिजनों को यहां से मरीज को ले जाने की सलाह देता था। सेहत विभाग के डायरेक्टर ऑफिस से ट्रॉमा सेंटर की रिपोर्ट के आधार पर अस्पताल प्रशासन को इस संबंध में सजग किया था। मामले को गंभीरता से लेते हुए अस्पताल प्रशासन ने इसका कड़ा संज्ञान लिया था। हालांकि स्टाफ को इधर से उधर करने को लेकर एसएमओ पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगे।
ट्रॉमा सेंटर के एसएमओ डॉ. चन्नजीव सिंह ने बताया कि अस्पताल प्रशासन की ओर से कार्यप्रणाली में सुधार करने के बाद बेहतर नतीजे मिलने लगे हैं। एक जनवरी से 13 जनवरी तक ट्रॉमा सेंटर में 101 मरीजों को भर्ती किया गया। इनमें से केवल दस मरीज लामा हुए और किसी को भी रेफर नहीं किया गया। 44 मरीज इलाज करवाने के बाद डिस्चार्ज किए गए और तीन की मौत हुई। जबकि दिसबंर में पहले चार दिन में ही 38 मरीजों में से 24 मरीज लामा हो गए थे।
क्या होता है लामा
नियमों के अनुसार यदि किसी मरीज की हालत बेहद खराब हो और उसका उपचार यहां संभव न हो तो डॉक्टर उसे दूसरे अस्पताल के लिए रैफर करता है। वहीं, जब किसी मरीज के परिजन डॉक्टर के रेफर किए बिना ही उसे किसी दूसरे अस्पताल में ले जाना चाहते हैं तो उनसे अस्पताल लिखवा कर ले लेता है कि वे अपने रिस्क पर मरीज को लेकर जा रहे हैं। यदि मरीज को कुछ हुआ तो वे इसके लिए खुद जिम्मेदार होंगे। इसके बाद अस्पताल स्टाफ फाइल पर ‘लामा’ लेफ्ट एंगेस्ट मेडिकल एडवाइज लिख देता है।
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